Indian Rupee: रुपया 12 पैसे मजबूत, एक हफ्ते के शीर्ष पर, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आने से मिला समर्थन
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 79.86 पर खुला। कारोबार के दौरान 79.70 से 79.87 के दायरे में रहा। रुपये ने डॉलर के मुकाबले कारोबारी सप्ताह की शुरुआत मजबूती से की है। इसमें कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और क्षेत्रीय मुद्राओं में आई मजबूती का भी योगदान रहा।
डॉलर के मुकाबले रुपया विदेशी मुद्रा की कीमतें सोमवार को 12 पैसे मजबूत होकर 79.78 पर बंद हुआ। यह 14 जुलाई के बाद रुपये का एक सप्ताह का उच्च स्तर है। अन्य विदेशी मुद्राओं में तेजी और कच्चे तेल में नरमी से घरेलू मुद्रा को समर्थन मिला।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 79.86 पर खुला। कारोबार के दौरान 79.70 से 79.87 के दायरे में रहा। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के दिलीप परमार ने कहा, रुपये ने डॉलर के मुकाबले कारोबारी सप्ताह की शुरुआत मजबूती से की है। इसमें कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और क्षेत्रीय मुद्राओं में आई मजबूती का भी योगदान रहा।
सोना मामूली सस्ता, चांदी भी 1,331 रुपये फिसली ः दिल्ली सराफा बाजार में सोना 5 रुपये सस्ता होकर 51,145 रुपये प्रति 10 ग्राम रहा। चांदी 1,331 रुपये सस्ती होकर 54,351 रुपये प्रति किलोग्राम रही।
सेंसेक्स में 6 दिन की तेजी थमी, 306 अंक लुढ़का
घरेलू शेयर बाजार में पिछले छह कारोबारी सत्रों से जारी तेजी सोमवार को थम गई। तेल-गैस, वाहन, दूरसंचार कंपनियों के शेयरों में मुनाफावसूली और विदेशी संस्थागत निवेशकों की पूंजी निकासी से घरेलू बाजार में गिरावट आई। इससे सेंसेक्स 306.01 अंक गिरकर 55,766.22 पर बंद हुआ। निफ्टी 88.45 अंकों की गिरावट के साथ 16,631 के स्तर पर बंद हुआ।
विस्तार
डॉलर के मुकाबले रुपया सोमवार को 12 पैसे मजबूत होकर 79.78 पर बंद हुआ। यह 14 जुलाई के बाद रुपये का एक सप्ताह का उच्च स्तर है। अन्य विदेशी मुद्राओं में तेजी और कच्चे तेल में नरमी से घरेलू मुद्रा को समर्थन मिला।
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 79.86 पर खुला। कारोबार के दौरान 79.70 से 79.87 के दायरे में रहा। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के दिलीप परमार ने कहा, रुपये ने डॉलर के मुकाबले कारोबारी सप्ताह की शुरुआत मजबूती से की है। इसमें कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और क्षेत्रीय मुद्राओं में आई मजबूती का भी योगदान रहा।
सोना मामूली सस्ता, चांदी भी 1,331 रुपये फिसली ः दिल्ली सराफा बाजार में सोना 5 रुपये सस्ता होकर 51,145 रुपये प्रति 10 ग्राम रहा। चांदी 1,331 रुपये सस्ती होकर 54,351 रुपये प्रति किलोग्राम रही।
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घरेलू शेयर बाजार में पिछले छह कारोबारी सत्रों से जारी तेजी सोमवार को थम गई। तेल-गैस, वाहन, दूरसंचार कंपनियों के शेयरों में मुनाफावसूली और विदेशी संस्थागत निवेशकों की पूंजी निकासी से घरेलू बाजार में गिरावट आई। इससे सेंसेक्स 306.01 अंक गिरकर 55,766.22 पर बंद हुआ। निफ्टी 88.45 अंकों की गिरावट के साथ 16,631 के स्तर पर बंद हुआ।
रिकॉर्ड निचले स्तर पर रुपया: डॉलर के मुकाबले रुपया 51 पैसे कमजोर होकर 80.47 पर पहुंचा, अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
भारतीय रुपए में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। आज, यानी 22 सितंबर के शुरुआती कारोबार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 51 पैसे गिरकर अब तक के सबसे निचले स्तर 80.47 रुपए पर खुला है। इससे पहले बुधवार, यानी 21 सितंबर को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 26 पैसे गिरकर 80 के स्तर पर बंद हुआ था।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में 0.75% की बढ़ोतरी की। ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25% की गई हैं। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं।
अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ जाने से वहां की मुद्रा, यानी डॉलर की कीमत बढ़ जाती है। डॉलर मजबूत होने लगता है। इससे डॉलर की तुलना में रुपया जैसी दूसरी करेंसी की वैल्यू घट जाती है। दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों द्वारा भारत से पैसा निकाला जाता है, तब भी रुपया कमजोर होगा।
कैसे तय होती है करेंसी की कीमत?
करेंसी के उतार-चढ़ाव के कई कारण होते हैं। डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उस करेंसी का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में - करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा।
कहां नुकसान या फायदा?
नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।
फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली IT और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।
करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि, तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था जो आर्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया।
कैसे संभलती है स्थिति?
मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार तीसरे हफ्ते तेजी, 550 अरब डॉलर हुआ फॉरेक्स रिजर्व
वैश्विक घटनाक्रमों के कारण कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों, आयात महंगा होने व रुपये के मूल्य में कमजोरी से विदेशी मुद्रा भ . अधिक पढ़ें
- News18 हिंदी
- Last Updated : December 03, 2022, 08:24 IST
हाइलाइट्स
भारत का फॉरेक्स रिजर्व समीक्षाधीन सप्ताह में करीब 3 अरब डॉलर बढ़ा.
देश के गोल्ड रिजर्व में इस दौरान 7.3 करोड़ डॉलर की गिरावट आई.
शेयर बाजार में शुक्रवार को लंबे बुल रन के बाद गिरावट देखने को मिली.
नई दिल्ली. देश का विदेशी मुद्रा भंडार 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान लगातार तीसरे हफ्ते बढ़त में रहा. सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार 2.9 अरब डॉलर बढ़कर 550.14 अरब डॉलर पर पहुंच गया. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने शुक्रवार को यह जानकारी विदेशी मुद्रा की कीमतें दी. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 18 नवंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.54 अरब डॉलर बढ़कर 547.25 अरब डॉलर पर पहुंच गया था. अगस्त, 2021 के बाद देश के विदेशी मुद्रा भंडार में इस सप्ताह सबसे तेज वृद्धि हुई है.
गौरतलब है कि अक्टूबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 645 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्चस्तर पर पहुंच गया था. हालांकि, इसके बाद वैश्विक घटनाक्रमों के कारण कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों, आयात महंगा होने व रुपये के मूल्य में कमजोरी से विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से नीचे की ओर लुढ़का था. आरबीआई ने इसके बाद रुपये में गिरावट को थामने के लिए हस्तक्षेप किया और साथ ही कच्चे तेल के दाम भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी नीचे आ गए. इससे फॉरेक्स रिजर्व को अब कुछ राहत मिलती दिख रही है.
मुद्रा भंडार से जुड़े अन्य आंकड़े
केंद्रीय बैंक ने कहा कि कुल मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा माने जाने वाली फॉरन करेंसी एसेट (एफसीए) 25 नवंबर को समाप्त सप्ताह में तीन अरब डॉलर बढ़कर 484.28 अरब डॉलर हो गई. इसके अलावा गोल्ड रिजर्व का मूल्य समीक्षाधीन सप्ताह में 7.3 करोड़ डॉलर की गिरावट के साथ 39.938 अरब डॉलर रह गया. आंकड़ों के अनुसार, एसडीआर 2.5 करोड़ डॉलर घटकर 17.88 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में रखा देश का मुद्रा भंडार भी 1.4 करोड़ डॉलर घटकर 5.03 अरब डॉलर रह गया.
रुपया गिरकर हुआ बंद
डॉलर के मुकाबले रुपया शुक्रवार को 7 पैसे की गिरावट के साथ 81.33 के स्तर पर बंद हुआ. ऐसा तब हुआ है जब डॉलर कमजोर हुआ है. हालांकि, विदेशी निवेशकों द्वारा एक बार फिर निकासी किए जाने के कारण रुपये की वैल्यु को झटका लगा. गुरुवार को एफआईआई शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने 1565 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. शुक्रवार को सेंसेक्स भी करीब 416 अंक टूटकर 62868 के स्तर पर बंद हुआ. कच्चे तेल की कीमतों में आज कुछ गिरावट देखने को मिल रही है. ब्रेंट क्रूड 1.31 डॉलर गिरकर 85.57 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है.
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तेल की कीमतें बढ़ने से इराक का विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया
समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने आईसीबी के सलाहकार एहसान अल-यासेरी के हवाले से कहा, "इराकी सेंट्रल बैंक (आईसीबी) में वित्तीय भंडार (विदेशी मुद्रा का) उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है और भविष्य में 100 अरब डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है।" मीडिया।
अल-यासेरी के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के फैलने के बाद से वैश्विक बाजारों में तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है, जिससे इराक और अन्य तेल निर्यातक देशों को लाभ हुआ है।
हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि विदेशी मुद्रा भंडार का आकार आर्थिक सुधार के लिए एक पूर्ण संकेतक नहीं है क्योंकि सबसे महत्वपूर्ण बात वित्तीय मार्गदर्शन और सरकारी व्यय का अनुशासन है।
इराक की अर्थव्यवस्था कच्चे तेल के निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर करती है, जिसका देश के राजस्व का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है।
Rupee: डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर हो रहा है रुपया, आपके लिए क्या समझना है जरूरी?
Rupee Dollar: $1 की कीमत ₹80 के बराबर हो चुकी है. यह भारतीय इतिहास का सबसे सबसे विदेशी मुद्रा की कीमतें न्यूनतम स्तर है. पिछली सरकार (यूपीए 2004- 2014) की तुलना में देखें तो डॉलर के मुकाबले रुपए में तकरीबन ₹20 की गिरावट आई है. 2014 की शुरुआत में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य ₹61.8 हुआ करता था.
कमज़ोर होते रुपए के आर्थिक नुकसान क्या हैं?
भारतीय अर्थव्यवस्था एक आयात आधारित अर्थव्यवस्था है. हमेशा से ही निर्यात के मुकाबले आयात का हिस्सा ज्यादा रहा है. इसलिए गिरते रुपए का पहला नुकसान तो यह होगा कि भारत के इंपोर्ट बिल पर पहले की तुलना में अत्यधिक भार बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आयेगी. पिछले 8 वर्षों में भारत के लिए अप्रत्याशित विदेशी मुद्रा भंडार एक बड़ी कामयाबी रही है. लेकिन पहले ही निवेशकों के जरिए भारत से पैसे बाहर निकालने की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर नकरात्मक असर पड़ रहा था और अब कमज़ोर होते रुपए के रुप में दोहरी मार पड़ेगी.
विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा
पिछले वर्ष 3 सितंबर 2021 को पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 642.5 अरब डॉलर के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था. लेकिन वर्तमान समय में भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई को विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 588.314 अरब डॉलर रह गया था. डॉलर के मुकाबले रूपये में आ रही तेज गिरावट की वजह से देश का व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है. बीते जून में देश का व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर रहा था, जबकि जून 2021 में यह महज 9.60 अरब डॉलर ही था.
महंगाई की मार
कमजोर होते रुपए की एक मार महंगाई के रुप विदेशी मुद्रा की कीमतें में भी दिखाई पड़ती है. भारत के कुल विदेश व्यापार को देखें तो पता चलता है कि हम सबसे अधिक आयात पेट्रोलियम उत्पादों का करते हैं. इसलिए सबसे ज्यादा असर भी इसी पर दिखाई पड़ने वाला है. रुपए की कमज़ोरी की वजह से महंगे आयात भुगतान की स्थिति में कंपनियां पहले से महंगे डीजल और पेट्रोल के दामों में एक बार फ़िर बढ़ोत्तरी करेगी. जिसका असर सीधे तौर पर आम जनता पर दिखाई पड़ेगा. इसके साथ ही भारत खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का भी आयात बड़े स्तर पर करता है. इसलिए यहां भी दामों में उछाल देखी जाएगी. ऐसी स्तिथि में पहले से महंगाई की मर झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और भी बुरे दिन आ जायेंगे.
रुपए में गिरावट से क्या निर्यात में फायदा मिलेगा?
एक आर्थिक आकलन यह जरूर कहता है कि निर्यात बढ़ाने के लिए मुद्रा के मूल्य में गिरावट फायदेमंद हो सकती है, लेकिन भारत के दृष्टिकोण से देखें तो यह आकलन बहुत सटीक नज़र नहीं आता है. उदाहरण के लिए जून महीने में भले ही देश का एक्सपोर्ट 23.5% तक बढ़ा हो लेकिन इसके मुकाबले में आयात दोगुने दर से भी अधिक का रहा है. जून 2022 में देश का आयात सालाना आधार पर 57.55% बढ़ा है. अब ऐसी स्थिति में निष्कर्ष यही निकलता है कि रुपए में गिरावट के बावजूद भी भारत का व्यापार घाटा (India's Trade Deficit) बढ़ा है.
रुपए की गिरावट के क्या कारण हैं?
इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें यह समझना होगी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सिर्फ रुपया ही एक मात्र करेंसी नहीं है जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई है. बल्कि दुनिया के संपन्न आर्थिक देशों की करेंसी भी कमज़ोर हुई है. इन सभी के पीछे के कारण भी लगभग एक से ही दिखाई पड़ते हैं. सबसे पहला कारण तो यूक्रेन-रूस के बीच जारी युद्ध को माना जा सकता है. इन दो देशों की लड़ाई ने वैश्वीक अस्थिरता पैदा की है, जिसकी वज़ह से आर्थिक नुकसान देखने को मिल रहे हैं. कोविड-19 की वजह से जारी आर्थिक सुस्ती भी इसका एक मुख्य कारण है. लेकिन भारतीय रुपए में गिरावट का एक अतिरिक्त कारण निवेशकों का भारत से मोहभंग होना भी है.
कुछ दिनों में संभलेगी स्थिति
भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रो० के वी सुब्रह्मण्यम की मानें तो रुपए में आई गिरावट अल्पकालिक है. उनके अनुसार जब वैश्विक अस्थिरता बढ़ती है तो 'फ्लाइट टू सेफ्टी' जैसी आर्थिक घटना की वजह से करेंसी में गिरावट आती है. भारतीय रुपए के लिए भी यही कारण दिखाई पड़ता है. बकौल सुब्रह्मण्यम भारतीय रुपए में आई गिरावट बहुत से देशों के मुकाबले अभी कम है. यूक्रेन और रूस के बीच जंग की शुरुआत से आकलन करें तो यूरो करेंसी डॉलर के मुकाबले 11.2% कमज़ोर हुई है तो वहीं जापानी येन 18.8% कमज़ोर हुआ है. जबकि इसकी तुलना में भारतीय करेंसी की गिरावट 5.3% ही है. इसलिए आने वाले समय में रुपया एक बार फिर बेहतर स्थिति में आ जायेगा.
डॉलर की मजबूती की वजह
केंद्र सरकार भी स्तिथियों को भांपते हुए आयात भुगतान के अन्य माध्यमों पर काम कर रही है. चूंकि भारत विदेशी मुद्रा के रुप में डॉलर का भुगतान अधिकांश आयात के लिए करता है, इसलिए भारत के ऊपर डॉलर मुद्रा का एक विशेष दबाव हमेशा से बना रहता है. हाल की परिस्थितियों में भारत ने बहुत से देशों के साथ भारतीय रुपए में ही व्यापार करने की संधि की है, जिसमें प्रमुख रुप से रूस और ईरान जैसे देश शामिल हैं. इन देशों से एक फायदा यह है कि पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में सुविधा मिल जाएगी. वैश्विक अर्थव्यवस्था का समीकरण भी अब यही कहता है कि दुनिया को डॉलर के अलावा अन्य करेंसी को भी व्यापार के लिए अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की जरूरत है. डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देना ही विश्व व्यापार में अन्य देशों को स्थापित करेगा.
(लेखक बीएचयू के फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)
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