खुला रुख: ऑस्ट्रेलियाई संसद द्वारा भारत के साथ व्यापार समझौते को मंजूरी

एक दशक से अधिक की अवधि में एक विकसित अर्थव्यवस्था के साथ हुए भारत के पहले बड़े मुक्त व्यापार समझौते यानी इस साल अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए समझौते के पहले चरण के जल्द ही लागू हो जाने की संभावना है। इससे भारतीय सेवाओं और वस्तुओं की ऑस्ट्रेलियाई बाजार तक पहुंच आसान हो जाएगी। अपने पूर्ववर्ती और अब विपक्ष के नेता स्कॉट मॉरिसन द्वारा भारत के साथ आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ईसीटीए) पर हस्ताक्षर किए जाने के एक महीने बाद सत्ता संभालने वाले प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीस के प्रशासन ने ऑस्ट्रेलियाई संसद से इस समझौते पर मुहर लगवाने में कामयाबी हासिल की। इस तरह, भारत-ऑस्ट्रेलिया साझेदारी को कैनबरा में व्यापक और द्विदलीय समर्थन प्राप्त हुआ है। खासकर उस स्थिति में, जब ऑस्ट्रेलिया विशेष रूप से चीन द्वारा ‘व्यापार का शस्त्रीकरण’ किए जाने से परेशान है। इस साझेदारी ने निश्चित रूप से भारत के अधिक भरोसेमंद भागीदार होने संबंधी भावना को जगाने में काफी मदद की है। दोनों देश जहां पहले से ही हाल ही में गठित चार-राष्ट्रों वाले क्वाड, जोकि त्रिपक्षीय आपूर्ति श्रृंखला से जुड़ी एक सुदृढ़ पहल है और इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम (आईपीईएफ) जैसे वैश्विक गुटों का हिस्सा हैं, वहीं यह द्विपक्षीय व्यापार समझौता घिसी-पिटी आपूर्ति श्रृंखलाओं से हटकर ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति की ओर बढ़ रही दुनिया के सामने भारत की साख के संदर्भ में एक मजबूत सकारात्मक संकेत है। विभिन्न व्यापारिक साझेदारों, जिनमें से कुछ भारत के साथ इसी किस्म के समझौते पर बातचीत कर रहे हैं, की निगाहें भी इन दोनों देशों के बीच एक अपेक्षाकृत अधिक व्यापक संधि को मजबूत करने की दिशा में अगले चरण की बातचीत की रूपरेखा पर जमीं हैं।

भारत को उम्मीद है कि अगले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार 31 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मौजूदा स्तर से बढ़कर लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस बढ़ोतरी में भारतीय निर्यात की हिस्सेदारी आधी होगी। इससे श्रम प्रधान क्षेत्रों में एक लाख नए रोजगार सृजित होंगे। कुल 98.3 फीसदी ऑस्ट्रेलियाई टैरिफ लाइनों पर इस समझौते के लागू होने वाले दिन से मिलने वाले शून्य शुल्क के लाभ को पांच साल के भीतर सभी भारतीय उत्पादों तक बढ़ा

दिया जाएगा। बदले में, ऑस्ट्रेलिया को भारत को किए जाने वाले उसके 90 फीसदी निर्यात (मूल्य के संदर्भ में) पर शून्य शुल्क लाभ हासिल होगा। इसके लदान (शिपमेंट) में कोयला, धातु और ऊन जैसे कच्चे माल के वर्चस्व होने का सीधा मतलब भारतीय फर्मों के लिए सस्ता इनपुट होगा। भारतीय रसोइयों एवं योग प्रशिक्षकों के लिए वार्षिक वीजा कोटा तथा भारतीय छात्रों के लिए अध्ययन के बाद कामकाज के लिए वीजा की व्यवस्था और ऑस्ट्रेलिया द्वारा एक दोहरे कराधान से बचाव संबंधी समझौते को मंजूरी से द्विपक्षीय संबंध और अधिक मजबूत होंगे। दोहरे कराधान से बचाव संबंधी समझौते से भारतीय आईटी फार्मों को एक वर्ष में लाखों डॉलर की बचत होने की उम्मीद है। अब जबकि भारत यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ और कनाडा के साथ व्यापारिक समझौतों को अंजाम देने के करीब है, एक उद्योग-स्तरीय साझेदारी की परिकल्पना करने वाला ऑस्ट्रेलिया के साथ शराब आयात संबंधी प्रावधान अन्य देशों के लिए एक नमूना बन सकता है। यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि व्यापार समझौते नए दरवाजे खोलते जरूर हैं, लेकिन इनका स्वचालित अर्थ उच्च निर्यात या बेहतर व्यापार संतुलन नहीं होता है जैसाकि आसियान और जापान के साथ भारत के पिछले समझौतों के मामले में साफ हुआ है। भारत की समग्र वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बेहतर करने का कोई शॉर्टकट या आसान विकल्प उपलब्ध नहीं है।

डेली अपडेट्स

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने डेटा जारी किया है जिसमें दर्शाया गया है कि रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2022-23 के केवल पाँच महीनों (अप्रैल-अगस्त) में 18,229.03 मिलियन अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है।

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जाँच-परिणाम:

  • अवलोकन:
    • दोनों देशों के बीच कुल वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2021-22 में 13,124.68 मिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2020-21 में 8,141.26 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
      • कोविड से पहले यह वर्ष 2019-20 में 10,110.68 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा 2018-19 में 8,229.91 मिलियन अमेरिकी डॉलर और 2017-18 में 10,686.85 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
      • अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इराक और इंडोनेशिया ऐसे छह देश थे जिन्होंने वर्ष 2022-23 के पहले पाँच महीनों के दौरान भारत के साथ व्यापार की उच्च मात्रा दर्ज की।
      • यह मुख्य रूप से रूस से तेलऔर उर्वरक के आयात में अचानक उछाल के कारण हुआ, यह वर्ष 2022 के पहले से ही बढ़ना शुरू हुआ था।
        • पिछले वर्ष के समान महीनों की तुलना में तीन महीनों (जून में 561.1%, जुलाई में 577.63% और अगस्त में 642.68%) में 500% की वृद्धि हुई थी।

        भारत-रूस संबंधों के विभिन्न पहलू:

        • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
            के दौरान भारत और सोवियत संघ के बीच मज़बूत रणनीतिक, सैन्य, आर्थिक और राजनयिक संबंध थे। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस को भारत के साथ घनिष्ठ संबंध विरासत में मिले, जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों ने एक विशेष सामरिक संबंध साझा किये।
          • हालांँकि पिछले कुछ वर्षों में खासकर पोस्ट-कोविड परिदृश्य में संबंधों में भारी गिरावट आई है। इसका सबसे बड़ा कारण रूस के चीन और पाकिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध होना है, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में भारत के लिये कई भू-राजनीतिक मुद्दों को उत्पन्न कर दिया है।
          • वर्ष 2019 में राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रूस के सर्वोच्च सम्मान - “ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल” प्रदान किया। रूस और भारत के बीच एक विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के विकास एवं रूसी तथा भारतीय लोगों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के
          • में उनके विशिष्ट योगदान के लिये प्रधानमंत्री को यह समान प्रदान किया गया था।
          • दो अंतर-सरकारी आयोग स्तर की वार्षिक बैठकें होती हैं - पहली व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC-TEC) पर तथा दूसरी सैन्य-तकनीकी सहयोग (IRIGC-MTC) पर।
          • दोनों देश वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 अरब अमेरिकी डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने पर ज़ोर दे रहे हैं।
          • दोनों देश नियमित रूप से त्रि-सेवा अभ्यास 'इंद्र'आयोजित करते हैं।
          • भारत और रूस के बीच संयुक्त ट्रेंड लाइनों के साथ व्यापार सैन्य कार्यक्रमों में शामिल हैं:
          • 5वीं पीढ़ी का लड़ाकू जेट कार्यक्रम
          • सुखोई एसयू-30एमकेआई कार्यक्रम
          • इल्यूशिन/एचएएल सामरिक परिवहन विमान
          • KA-226T ट्विन-इंजन यूटिलिटी हेलीकॉप्टर
          • कुछ युद्धपोत
          • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP) भारत में बनाया जा रहा है।
          • भारत और रूस दोनों बांग्लादेश में रूपपुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को स्थापित कर रहे हैं।

          भारत के लिये रूस का महत्त्व:

          • चीन को संतुलित करना: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रमण ने भारत-चीन संबंधों को एक ऐसे मोड़ पर ला दिया है, इससे यह भी प्रदर्शित हुआ कि रूस, चीन के साथ तनाव को कम करने में योगदान दे सकता है।
            • लद्दाख के विवादित क्षेत्र में गलवान घाटीमें घातक झड़पों के बाद रूस ने रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
            • रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक में भारत के पदचिह्नों का विस्तार होना तय है। इससे कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को भी बढ़ावा मिल सकता है।
            • वैश्विक हथियारों के व्यापार पर नज़र रखने वाले स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में भारत ने रूस से 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार आयात किये हैं।

            आगे की राह

            • रूस आने वाले दशकों तक भारत का प्रमुख रक्षा साझेदार बना रहेगा।
            • दूसरी ओर रूस और चीन के बीच वर्तमान में एक अर्द्ध-गठबंधन व्यवस्था है। रूस बार-बार दोहराता रहा है कि वह खुद को किसी के कनिष्ठ साझेदार के ट्रेंड लाइनों के साथ व्यापार रूप में नहीं देखता है। इसलिये रूस चाहता है कि भारत एक संतुलनकर्त्ता की तरह कार्य करे।
            • दोनों देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि वे तीसरे देशों को रूसी उपकरणों और सेवाओं के निर्यात के लिये भारत को उत्पादन आधार के रूप में उपयोग करने में कैसे सहयोग कर सकते हैं।
              • इसे संबोधित करने के लिये रूस ने 2019 में हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के बाद इसके लिये अपनी कंपनियों को भारत में संयुक्त उद्यम स्थापित करने की अनुमति देते हुए विधायी परिवर्तन किये हैं।
              • इस समझौते को समयबद्ध तरीके से कार्यान्वित करने की ज़रूरत है।

              UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्न:

              प्रीलिम्स

              प्रश्न. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ 'परमाणु क्षेत्र में सहयोग की प्राथमिकता और कार्यान्वयन के लिये कार्ययोजना' नामक ट्रेंड लाइनों के साथ व्यापार एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं? (2019)

              (a) जापान
              (b) रूस
              (c) यूनाइटेड किंगडम
              (d) संयुक्त राज्य अमेरिका

              उत्तर: (b)

              मेन्स

              प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौते पर भारत-अमेरिका रक्षा समझौते का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2020)

              विदेशी मुद्रा रुझान: तकनीकी विश्लेषण में ट्रेंड लाइन्स

              मूल अवधारणाओं में से एक है तकनीकी विश्लेषण प्रवृत्ति है.यह धारणा पर आधारित है कि बाजार में भाग लेने वाले कुछ समय के लिए परिसंपत्ति मूल्य आंदोलनों को टिकाऊ बनाने वाले झुंडों में निर्णय लेते हैं.

              ट्रेंड्स के प्रकार

              परिसंपत्ति मूल्यों की प्रचलित दिशा के आधार पर तीन प्रकार के रुझान हैं:

              • अपवर्ड ट्रेंड
              • नीचे रुझा
              • साइडवे या कोई स्पष्ट प्रवृत्ति नहीं

              एक अपवर्ड प्रवृत्तिउच्च स्थानीय उतार और उच्च स्थानीय चढ़ाव के लिए जा रही कीमतों की विशेषता है । चढ़ाव को जोड़ने वाली एक ऊपर की प्रवृत्ति सकारात्मक ढलान प्राप्त करती है.

              एक नीचे की प्रवृत्ति कम स्थानीय उतार और कम स्थानीय चढ़ाव बनाने की कीमतों की विशेषता है । उतार को जोड़ने वाली एक नीचे की रेखा नकारात्मक ढलान प्राप्त करती है.

              एक साइडवेज प्रवृत्ति दो क्षैतिज ट्रेंडलाइन द्वारा तैयार की जाती है जो कीमतों को बड़े ऊपर या नीचे की ओर आंदोलनों से रोकती है, जो एक निश्चित सीमा में उतार-चढ़ाव को रखते हुए होती है.

              अब विदेशों में भी चलेगा रुपया, हो सकेगा व्यापार और भुगतान, RBI ने लिया ये बड़ा फैसला

              अब रुपया भी डॉलर की लाइन में आ खड़ा हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक ने आज एक बड़ा फैसला लिया. जिसके चलते यह मुमकिन हुआ. दरअसल, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इंटरनेशनल ट्रेड सेटलमेंट के लिए भारतीय रुपये के इस्तेमाल को इजाजत दे दी है.

              Updated: July 11, 2022 9:59 PM IST

              RBI

              अब रुपया भी डॉलर की लाइन में आ खड़ा हुआ है. भारतीय रिजर्व बैंक ने आज एक बड़ा फैसला लिया. जिसके चलते यह मुमकिन हुआ. दरअसल, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने इंटरनेशनल ट्रेड सेटलमेंट के लिए भारतीय रुपये के इस्तेमाल को इजाजत दे दी है. आरबीआई ने कहा है कि वैश्विक स्तर पर होने वाले हर कारोबार का निपटारा भारतीय रुपये में किया जा सकेगा. दरअसल एक्सपोर्ट में भारतीय रुपए के इस्तेमाल से , ग्लोबल ट्रेडिंग में रुपये को बढ़ावा मिलने से भारतीय रुपये में मजबूती आएगी.

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              गौरतलब है कि भारतीय रुपये में व्यापार निपटान की सुविधा के साथ ही भारत को अब उन देशों या कंपनियों से व्यापार करने में आसानी होगी, जो कि डॉलर में लेनदेन करने की इच्छुक नहीं थी. उदाहरण के लिए रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका ने पूर्व के कई देशों पर डॉलर में रूस के साथ व्यापार करने पर रोक लगा दी थी, ऐसे में रुपये में व्यापार करने का विकल्प आने से ऐसे देशों से व्यापार करना और आसान होगा.

              अतिरिक्त इंतजाम करने के निर्देश

              भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये में वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती दिलचस्पी को देखते हुए बैंकों को भारतीय मुद्रा में आयात एवं निर्यात के लिए अतिरिक्त इंतजाम करने का सोमवार को निर्देश दिया. रिजर्व बैंक ने एक परिपत्र में कहा कि बैंकों को यह व्यवस्था लागू करने के पहले उसके विदेशी मुद्रा विभाग से पूर्व-अनुमति लेना जरूरी होगा. आरबीआई ने कहा, ‘भारत से निर्यात बढ़ाने पर जोर और भारतीय रुपये में वैश्विक कारोबारी समुदाय की बढ़ती दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए वैश्विक व्यापार को बढ़ाने के लिए यह तय किया गया है कि बिल बनाने, भुगतान और रुपये में आयात/निर्यात के निपटान के लिए एक अतिरिक्त इंतजाम किया जाए.’

              इस तरह आसान होगा व्यापार

              परिपत्र के मुताबिक, व्यापार सौदों के समाधान के लिए संबंधित बैंकों को साझेदार कारोबारी देश के अभिकर्ता बैंक के विशेष रुपया वोस्ट्रो खातों की जरूरत होगी. केंद्रीय बैंक ने कहा, ‘इस व्यवस्था के जरिये भारतीय आयातकों को विदेशी विक्रेता या आपूर्तिकर्ता से वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति के इन्वॉयस या बिल के एवज में भारतीय रुपये में भुगतान करना होगा जिसे उस देश के अभिकर्ता बैंक के खास वोस्ट्रो खाते में जमा किया जाएगा.’ इसी तरह विदेश में वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति करने वाले निर्यातकों को उस देश के निर्दिष्ट बैंक के खास वोस्ट्रो खाते में जमा राशि से भारतीय रुपये में भुगतान किया जाएगा. इस व्यवस्था से भारतीय निर्यातक विदेशी आयातकों से अग्रिम भुगतान भी रुपये में ले सकेंगे.

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              बिजनेस::चीन के साथ व्यापार संबंध तोड़ने से नुकसान संभव

              संक्षेप फोटो न्यूज. नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया नई दिल्ली। सीमा पर.

              बिजनेस::चीन के साथ व्यापार संबंध तोड़ने से नुकसान संभव

              संक्षेप फोटो न्यूज. नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया

              नई दिल्ली। सीमा पर आक्रामक रुख दिखा रहे चीन के साथ व्यापार संबंधों को तोड़ने की मांगों के बीच नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि मौजूदा स्थिति में बीजिंग के साथ व्यापार संबंधों को खत्म करने का मतलब भारत की संभावित आर्थिक वृद्धि का बलिदान करना होगा। उन्होंने कहा कि इसके बजाए तो भारत को अपने व्यापार का विस्तार करने के लिए ब्रिटेन और यूरोपीय संघ समेत अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने के प्रयास करने चाहिए। पनगढ़िया ने कहा, इस स्थिति में चीन के साथ व्यापारिक जंग छेड़ने का मतलब होगा हमारी संभावित वृद्धि. शुद्ध रूप से आर्थिक आधार पर, के साथ समझौता करना। इसकी (सीमा पर तनाव) प्रतिक्रिया में कार्रवाई करना उपयुक्त नहीं होगा। कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, पनगढ़िया ने कहा कि दोनों देश व्यापार प्रतिबंध जैसे कदम उठा सकते हैं लेकिन 17000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था (चीन) में, 3000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था (भारत) को नुकसान पहुंचाने की क्षमता कहीं अधिक होगी।

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