शेयर बाजार 13 दिसम्बर 2022 ,11:45

करेंसी स्वैप किसे कहते हैं और इससे अर्थव्यवस्था को क्या फायदे होंगे?

करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ होता है मुद्रा की अदला बदली. जब दो देश/ कम्पनियाँ या दो व्यक्ति अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा करने के लिए आपस में अपने देशों की मुद्रा की अदला बदली करने का समझौता करते हैं तो कहा जाता है कि इन देशों में आपस में करेंसी स्वैप का समझौता किया है.

Currency Swap

विनिमय दर की किसी भी अनिश्चित स्थिति से बचने के लिए दो व्यापारी या देश एक दूसरे के साथ करेंसी स्वैप का समझौता करते हैं.

विनिमय दर का अर्थ: विनिमय दर का अर्थ दो अलग अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है, अर्थात “ एक मुद्रा के सापेक्ष दूसरी मुद्रा का मूल्य”. वह बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का विनिमय होता है उसे विदेशी मुद्रा बाजार कहा जाता है.

वर्ष 2018 भारत और जापान ने 75 अरब डॉलर के करेंसी स्वैप एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किये हैं जिससे कि दोनों देशों की मुद्राओं में डॉलर के सापेक्ष उतार चढ़ाव को कम किया जा सके.

इस एग्रीमेंट का मतलब यह है कि भारत 75 अरब डॉलर तक का आयात जापान से कर सकता है और उसको भुगतान भारतीय रुपयों में करने की सुविधा होगी. ऐसी ही सुविधा जापान को होगी अर्थात जापान भी इतने मूल्य की वस्तुओं का आयात भारत से येन में भुगतान करके कर सकता है.

आइये इस लेख में जानते हैं कि करेंसी स्वैप किसे कहते हैं?

करेंसी स्वैप का शाब्दिक अर्थ होता है "मुद्रा की अदला बदली". अपने अर्थ के अनुसार ही इस समझौते में दो देश, कम्पनियाँ और दो व्यक्ति आपस में अपने देशों की मुद्रा की अदला बदली कर लेते हैं ताकि अपनी अपनी वित्तीय जरूरतों को बिना किसी वित्तीय नुकसान के पूरा किया जा सके.

करेंसी स्वैप को विदेशी मुद्रा लेन-देन माना जाता है और किसी कंपनी के लिए कानूनन जरूरी नहीं है कि वह इस लेन-देन को अपनी बैलेंस शीट में दिखाए. करेंसी स्वैप एग्रीमेंट में दो देशों द्वारा एक दूसरे को दी जाने वाली ब्याज दर फिक्स्ड और फ्लोटिंग दोनों प्रकार की हो सकती है.

करेंसी स्वैप से भारतीय अर्थव्यवस्था को क्या लाभ होंगे?

1. मुद्रा भंडार में कमी रुकेगी: डॉलर को दुनिया की सबसे मजबूत और विश्वसनीय मुद्रा माना जाता है यही कारण है कि पूरे विश्व में इसकी मांग हर समय बनी रहती है और कोई भी देश डॉलर में पेमेंट को स्वीकार कर लेता है.

डॉलर की सर्वमान्य स्वीकारता के कारण जब भारत से विदेशी पूँजी बाहर जाती है या विदेशी निवेशक अपना धन वापस निकलते हैं तो वे लोग डॉलर ही मांगते हैं जिसके कारण भारत के बाजार में डॉलर की मांग बढ़ जाती है जिसके कारण उसका मूल्य भी बढ़ जाता है. ऐसी हालात में RBI को देश के विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालकर मुद्रा बाजार में बेचने पड़ते हैं जिससे भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आती है.

यदि भारत का विभिन्न देशों के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट है तो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में (डॉलर के साथ विनिमय दर में परिवर्तन होने पर) कमी बहुत कम आएगी.

2. करेंसी स्वैप का एक अन्य लाभ यह है कि यह विनिमय दर में परिवर्तन होने से पैदा हुए जोखिम को कम करता है साथ ही यह ब्याज दर के जोखिम को भी कम कर देता है. अर्थात करेंसी स्वैप समझौते से अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुद्रा की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से राहत मिलती है.

3. वित्त मंत्रायल की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि भारत और जापान के बीच हुए करेंसी स्वैप समझौते से भारत के कैपिटल मार्केट और विदेशी विनिमय को स्थिरता मिलेगी. इस समझौते के बाद से भारत जरूरत पड़ने पर 75 अरब डॉलर की पूंजी का इस्तेमाल कर सकता है.

4. जिस देश के साथ करेंसी स्वैप एग्रीमेंट होता है संबंधित देश सस्ते ब्याज पर कर्ज ले सकता है. इस दौरान इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उस वक्त संबंधित देश की करेंसी का मूल्य क्या है या दोनों देशों के बीच की मुद्राओं के बीच की विनिमय दर क्या है.

आइये करेंसी स्वैप एग्रीमेंट को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं;

मान लो कि भारत में व्यापार करने करने वाले व्यापारी रमेश को 10 साल के लिए 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की जरूरत है. रमेश किसी अमेरिकी बैंक से 1 मिलियन डॉलर का लोन लेने का प्लान बनाता है लेकिन फिर उसे याद आता है कि यदि उसने आज की विनिमय दर ($1 = रु.70) पर 7 करोड़ का लोन ले लिया और बाद में रुपये की विनिमय दर में गिरावट आ जाती है और यह विनिमय दर गिरकर $1 = रु.100 पर आ जाती है तो रमेश को 10 साल बाद समझौते के पूरा होने पर 7 करोड़ के लोन के लिए 10 करोड़ रूपये चुकाने होंगे. इस प्रकार रमेश को लोन लेने पर बाजार में उतार चढ़ाव के कारण 3 करोड़ रुपये का घाटा हो सकता है.

लेकिन तभी रमेश को एक फर्म से पता चलता है कि अमेरिकी व्यापारी अलेक्स को 7 करोड़ रुपयों की जरूरत है. अब रमेश और अलेक्स दोनों करेंसी स्वैप का एग्रीमेंट करते हैं जिसके तहत रमेश 7 करोड़ रुपये अलेक्स को दे देता है और अलेक्स 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर रमेश को. दोनों के द्वारा समझौते की राशि का मूल्य $1 =रु.70 की विनिमय दर के हिसाब से बराबर है.

अब रमेश, अलेक्स को अमेरिका के बाजार में प्रचलित ब्याज दर (मान लो 3%) की दर से 1 मिलियन डॉलर पर ब्याज का 10 साल तक भुगतान करेगा और अलेक्स, रमेश को भारत के बाजार में प्रचलित ब्याज दर (मान लो 6%) के हिसाब से 7 करोड़ रुपयों के लिए ब्याज देगा.

समझौते की परिपक्वता अवधि (date of maturity) पर रमेश, अलेक्स को 1 मिलियन डॉलर लौटा देगा और अलेक्स भी रमेश को 7 करोड़ रुपये लौटा देगा. इस प्रकार के आदान-प्रदान के लिए किया गया समझौता ही करेंसी स्वैप कहलाता है.

इस प्रकार करेंसी स्वैप की सहायता से रमेश और अलेक्स दोनों ने विनिमय दर के उतार चढ़ाव की अनिश्चितता से बचकर अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा कर लिया है.

समय की जरुरत को देखते हुए भारत ऐसी ही समझौते अन्य देशों के साथ करने की तैयारी कर रहा है. भारत, कच्चा टेल खरीदने के लिए ईरान के साथ ऐसा ही समझौता करने की प्रोसेस में है. अगर भारत और ईरान के बीच यह समझौता हो जाता है तो भारत हर साल 8.5 अरब डॉलर बचा सकता है.

उम्मीद है कि ऊपर दिए गए विश्लेषण और उदाहरण की सहायता से आप समझ गए होंगे कि करेंसी स्वैप किसे कहते हैं और इससे किसी अर्थव्यवस्था को क्या फायदे होते हैं.

अमेरिका-चीन व्यापार तनाव का भारतीय मुद्रा पर असर, रुपया 23 पैसे टूटा

चीन के बीच व्यापार क्षेत्र में तनाव के बीच विदेशी कोषों के धन निकासी का सिलसिला जारी रहने से विदेशी विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डालर के मुकाबले लगातार चौथे दिन गिरावट में रहा.

अन्तरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 69.70 कमजोर खुला (फोटो- पीटीआई).

चीन के बीच व्यापार क्षेत्र में तनाव के बीच विदेशी कोषों के धन निकासी का सिलसिला जारी रहने से विदेशी विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डालर के मुकाबले लगातार चौथे दिन गिरावट में रहा. बृहस्पतिवार को डालर के मुकाबले रुपया 23 पैसे टूटकर प्रति डालर 69.94 पर बंद हुआ. बाजार सूत्रों ने कहा कि अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चेतेल में मजबूती और शेयर बाजार में गिरावट से भी रुपये के प्रति बाजार में धारणा प्रभावित हुई.

अन्तरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 69.70 कमजोर खुला. कारोबार के दौरान यह 70.03 तक हल्का होने के बाद अंत में पिछले बंद के मुकाबले 23 पैसे टूटकर 69.94 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों पर आधारित सेंसेक्स 230.22 अंक अथवा 0.61 प्रतिशत की गिरावट दर्शाता 37,558.91 अंक पर बंद हुआ.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध को और तेज करते हुए 10 मई से चीन के सामान पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का ऐलान कर दिया है. अमेरिका ने चीनी सामान पर 10 फिसदी की इंपोर्ट ड्यूटी को बढ़ा कर 25 फीसदी कर दिया है. अमेरिकी ने चीन के करीब 200 अरब डॉलर के उत्पाद पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने का फैसला किया है. अमेरिका के इस कदम से दुनियाभर के कारोबारी जगत में हलचल मच गई है. हालांकि ट्रंप की धमकी के बाद से ही विभिन्न देशों के स्टॉक मार्केट पर इसका असर देखा जा रहा था. भारत में संसेक्स लगातर गोते खा रहा है.

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से.

नए सामाजिक अनुबंध की जरूरत

पचहत्तर साल पहले भारत को भूख और भुखमरी से निपटने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। उस काल-खंड में विदेशी मुद्रा पाने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। हमारे सामने तब एक आजाद मुल्क बने रहने और अति-गरीबी से मुक्ति के लिए अपने आर्थिक विकास को गति देने की भी चुनौती थी। बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, घरेलू व निर्यात संबंधी प्रतिस्पद्र्धी बुनियादी ढांचे और कृषि व विनिर्माण क्षमताओं के आधुनिकीकरण को लेकर भी हम प्रयासरत थे। इसी तरह, सामंती व्यवस्था से ऊपर उठते हुए हमें एक ऐसे युग में प्रवेश करना था, जहां समानता और सामाजिक गतिशीलता को अधिक प्रोत्साहन मिले। इस लिहाज से देखें, तो इन सभी अहम कसौटियों पर हमने अच्छी-खासी तरक्की की है।
मगर क्या हमने अवसर भी गंवाए, गलतियां भी कीं? वास्तव में, हर सफलता कमियों और गंवाए गए अवसरों के साथ ही रेखांकित की जाती है। जैसे, यह समझ से परे है कि कैसे हमने अत्यधिक नियंत्रण वाले केंद्रीकृत योजनाबद्ध मॉडल को लगातार बनाए रखा। यह भी बहुत साफ नहीं कि साल 1991 के आर्थिक सुधार उस समय की मजबूरी थे या हमारी चयन संबंधी आजादी का प्रतिफल? विकल्प तभी सार्थक होते हैं, यदि चुनने के रास्ते कई हों। साल 1991 में लोग विदेशी मुद्रा व्यापार कहाँ करते हैं हमारे पास चयन के विकल्प सीमित थे।

इस परिस्थिति में यदि हम यहां से अगले 25 वर्षों के लिए अपनी यात्रा शुरू करते हैं, तो 100वें साल पर भारत के लिए हमारी खोज क्या होगी? उन लक्ष्यों की झलक स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री के संबोधन में हमें मिलती है, जिनमें सामाजिक सुधार और पुनर्रचना भी शामिल हैं। उनके ‘पांच प्रण’ के हर प्रण में दूरगामी बदलाव नजर आते हैं और इनमें सबसे अहम है भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प। लिहाजा, हमें खुद से यह पूछना चाहिए कि एक विकसित देश हम कैसे बनेंगे, और इस लक्ष्य को पाने के लिए हमें किस तरह के बदलावों की जरूरत है?
व्यापक अर्थों में इसका मतलब है, सामाजिक अनुबंध की पुनर्रचना। सन् 1762 में जीन-जैक्स रूसो द्वारा गढे़ गए मूल सामाजिक अनुबंध में शासन संरचना और उसके प्रति दायित्व को लेकर नागरिकों में सहमति थी। बेशक समय की कसौटी पर यह अनुबंध काफी हद तक खरा उतरा है, लेकिन अगले 25 वर्षों के बदलाव की प्रकृति और उसकी रफ्तार पुराने अनुभवों के मुकाबले अलग हो सकती है। जाहिर है, नए सामाजिक अनुबंध से तात्पर्य यह है कि न केवल नागरिक अधिकारों को लेकर, बल्कि उसके कर्तव्यों को लेकर भी नए प्रावधान तय करने की जरूरत है। सवाल है कि एक उच्च आय वाले विकसित देश में हम लोग विदेशी मुद्रा व्यापार कहाँ करते हैं कैसे शुमार होंगे?
एक, हमें आर्थिक विकास की उन दरों को पाना होगा, जो हमारी प्रति व्यक्ति आय को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की परिभाषा के मुताबिक तय 20 हजार डॉलर नॉमिनल जीडीपी या विश्व बैंक के मापदंड के अनुरूप 12,696 डॉलर के करीब ले आए। अभी हम एक मध्य-आय वाले देश हैं। सिंगापुर सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी शणमुगरत्नम ने प्रथम अरुण जेटली व्याख्यानमाला को संबोधित करते हुए कहा कि लोगों की औसत आय बढ़ाने और अधिक रोजगार पैदा करने के लिए भारत को अगले 25 वर्षों तक आठ से दस फीसदी की दर से विकास करना होगा। यह अनुमान लगाया गया है कि इसके लिए आईएमएफ स्तर के हिसाब से 9.36 प्रतिशत और विश्व बैंक के स्तर के लिहाज से 7.39 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर को हासिल करना अनिवार्य होगा।

साफ है, व्यापार विकास की मुख्य धुरी होगा। हमें एक ऐसी व्यापार नीति तंत्र की जरूरत है, जो वास्तविक विनिमय दरों से आगे जाता हो, बल्कि अर्थव्यवस्था को अधिक प्रतिस्पद्र्धी बनाने के लिए व्यापार, रसद, परिवहन और नियामक ढांचे में उल्लेखनीय सुधार कर सके। आयात शुल्कों की संकीर्ण व्याख्या आत्मनिर्भर भारत के दर्शन से उलट है। जब तक प्रतिस्पद्र्धी कीमतों पर आयात उपलब्ध न होंगे, निर्यात क्षमता प्रतिस्पद्र्धी नहीं बन सकेगी। इसके अलावा, चीन के उदय सहित बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं व बदलावों को देखते हुए हमारी व्यापार रणनीति को एक अलग पटकथा की जरूरत है।
दो, मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर ध्यान देने की जरूरत है। हमें जीवन प्रत्याशा के साथ-साथ ग्रामीण आबादी तक बिजली की पहुंच, इंटरनेट की उपलब्धता, जीवन व संपत्ति की सुरक्षा और आय की असमानता को पाटने जैसे अहम मापदंडों पर सुधार करने की आवश्यकता है। हमें अपने एचडीआई स्कोर को 0.645 के मौजूदा मध्यम स्तर से 0.8 के करीब ले जाने की जरूरत है, ताकि हम उच्च स्तर पर पहुंच सकें। इसके लिए हमें मान्यता प्राप्त निर्यात निकायों की सिफारिशों के अलावा, शिक्षा व स्वास्थ्य देखभाल पर नए सिरे से जोर देने के लिए 2020 की नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और 2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में की गई प्रतिबद्धताओं के पालन की आवश्यकता है।

तीन, जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई व जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ने का अर्थ है मौलिक तरीकों से जीवन का संचालन। इसका मतलब है, कृषि पद्धतियों, उर्वरकों व कीटनाशकों के इस्तेमाल और यातायात के तरीके में बडे़ पैमाने पर बदलाव। जाहिर है, ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन, सौर पैनल, बैटरी भंडारण और परिवहन से जुड़े नियमों-नियामकों में व्यापक परिवर्तन करना होगा। इनमें निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित करने से जोखिम कम होगा, बहुपक्षीय संस्थानों से संसाधन जुटाए जा सकेंगे और लघु व मध्यम उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा। हमें अब भी सामाजिक क्षेत्र और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण निवेश करना होगा। मगर अनुकूलन और शमन के इस संयुक्त प्रयास के लिए तमाम हितधारकों की सहभागिता व सक्रिय योगदान की जरूरत होगी। इसमें केंद्र, राज्य सरकारों के अलावा सामाजिक क्षेत्र भी शामिल हैं।
एक विकसित देश बनना हमारा नया सामाजिक अनुबंध है, ताकि गुलामी की औपनिवेशिक विरासत के संकेतकों को मिटाकर उनकी जगह हम गौरव और अपेक्षाओं से युक्त कर्तव्यबोध को स्थापित कर सकें।अल्बर्ट आइंस्टीन ने बिल्कुल दुरुस्त कहा है, ‘अतीत से सीखो, वर्तमान में जियो और भविष्य से उम्मीदें पालो।’ भविष्य के आकलन का सबसे बेहतर तरीका है इसे गढ़ना!
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा सूखे में उगने वाला बाजरा

शेयर बाजार 13 दिसम्बर 2022 ,11:45

विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा सूखे में उगने वाला बाजरा

विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा सूखे में उगने वाला बाजरा

में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:

में स्थिति को सफलतापूर्वक जोड़ा गया:

लखनऊ, 13 दिसंबर (आईएएनएस)। कम पानी और सूखी जमीन पर उपज देने वाला बाजरा अब विदेशी मुद्रा की बरसात कराएगा। चंद रोज बाद शुरू होने वाला इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 इसका जरिया बनेगा। पोषक तत्वों से भरपूर अनेक प्रकार के रोगियों के लिए उपयुक्त यह बाजरा अब बड़े होटलों और किचन की शोभा बढ़ाएगा।दरअसल उत्तर प्रदेश में देश के कुल उत्पादन का करीब 20 फीसद है। प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के नाते इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। तब तो और भी जब अच्छी-खासी पैदावार के बावजूद सिर्फ एक फीसद बाजरे का निर्यात होता है। निर्यात होने वाले में अधिकांश साबुत बाजरे का होता है। लिहाजा प्रसंस्करण के जरिए इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

फरवरी में आयोजित होने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में भी इस सेक्टर पर खासा फोकस है। ऐसे में इंटरनेशनल मिलेट ईयर में बाजरे की लोकप्रियता बढ़ाने में खाद पानी का काम करेगी तो योगी सरकार का प्रसंस्करण उद्योग के प्रति सकारात्मक रवैया बोनस होगा।

अद्यतन आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक करीब 29 फीसद रकबे में बाजरे की खेती होती है। इसके बाद महाराष्ट्र करीब 21 फीसद रकबे के साथ दूसरे नंबर पर है। कर्नाटक 13.46 फीसद, उत्तर प्रदेश 8.06 फीसद, मध्य प्रदेश 6.11फीसद, गुजरात 3.94 फीसद और तमिलनाडु करीब 4 फीसद रकबे में बाजरे की खेती होती।

उत्तर प्रदेश की संभावना इस मामले में बेहतर है क्योंकि यहां प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन राष्ट्रीय औसत (1195 ) की तुलना में 1917 किग्रा है। उत्पादन के मामले में तमिलनाडु नंबर एक (2599 किग्रा) पर है। खेती के उन्नत तौर तरीके से और बेहतर उपज वाली प्रजातियों से इसके उपज को और अधिक किया जा सकता है।

मसलन साल 2022 तक यूपी में बाजरे की खेती का रकबा कुल 9,80 हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। साथ ही उत्पादकता बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसानों को इसका वाजिब दाम मिले इसके लिए सरकार 18 जिलों में प्रति कुन्तल 2350 रुपये की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी खरीद भी कर रही है।

उल्लेखनीय है कि गेहूं धान और गन्ने के बाद उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है, बाजरा। खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी भी है। पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है। इसलिए इसे चमत्कारिक अनाज, न्यूट्रिया मिलेट्स, न्यूट्रिया सीरियल्स भी कहा जाता है।

कृषि विशेषज्ञों की मानें तो 2018 में भारत द्वारा मिलेट वर्ष मनाने के बाद बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों की खूबियों के किसान और लोग जागरूक हुए हैं। नतीजन बाजरे के प्रति हेक्टेयर उपज, कुल उत्पादन और फसल आच्छादन के क्षेत्र (रकबे) में लगातार वृद्वि हुई।

कृषि के जानकर गिरीश पांडेय ने बताया कि बाजरे को न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं। चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है। इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है। साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती।

उन्होंने बताया कि बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं। इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं। लसलसापन नहीं होता। इससे अम्ल नहीं बन पाता। लिहाजा सुपाच्य होता है। इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है। लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी मुफीद है। बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता , मैग्निसियम और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं। साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाईबर (रेशा) मिलता है। इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन्स मिलते हैं। इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है। यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स, फाईटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस् प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यही वजह है कि सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है।

जैसे ही येलेन ने अमेरिका-भारत के आर्थिक संबंधों की तलाश की, भारत मुद्रा निगरानी सूची से बाहर हो गया

विभाग ने गुरुवार को कांग्रेस को एक रिपोर्ट में निर्णय से अवगत कराया जिसमें कहा गया था कि भारत सूची में बने रहने की कसौटी पर खरा नहीं उतरा। सूची जो निगरानी करती है कि क्या देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अनुचित प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त करने या भुगतान संतुलन समायोजन का फायदा उठाने के लिए अपनी मुद्रा और अमेरिकी डॉलर के बीच विनिमय दर में हेरफेर करते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इटली, मैक्सिको, थाईलैंड और वियतनाम को भी निगरानी सूची से हटा दिया गया है, जबकि चीन, जापान, कोरिया, जर्मनी, मलेशिया, सिंगापुर और ताइवान इस पर बने हुए हैं। भारत ने दो रिपोटिर्ंग अवधियों में तीन मानदंडों में से एक को पूरा किया, जिससे यह हटाने के योग्य हो गया, जैसा कि चार अन्य देशों ने किया था।

रिपोर्ट का विमोचन येलन की भारत यात्रा के दौरान व्यापार बंधनों को मजबूत करने के लिए किया गया था क्योंकि चीन पर अधिक निर्भरता से समस्याओं का सामना करने के बाद अमेरिका वैश्विक आर्थिक और विनिर्माण पुनर्गठन चाहता है। येलेन ने फ्रेंडशोरिंग की अवधारणा की बात की – मित्र देशों में आपूर्ति श्रृंखला लाना।

उन्होंने कहा- ऐसी दुनिया में जहां आपूर्ति श्रृंखला कमजोरियां भारी लागत लगा सकती हैं, हमारा मानना है कि भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को लोग विदेशी मुद्रा व्यापार कहाँ करते हैं मजबूत करना महत्वपूर्ण है। भारत हमारे भरोसेमंद व्यापारिक साझेदारों में से एक है। किसी देश को निगरानी सूची में रखने के लिए जिन तीन कारकों पर विचार किया गया है, वह हैं अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार अधिशेष का आकार, चालू खाता अधिशेष और विदेशी मुद्रा बाजार में लगातार एकतरफा हस्तक्षेप। इसके अलावा, यह मुद्रा विकास, विनिमय दर प्रथाओं, विदेशी मुद्रा आरक्षित कवरेज, पूंजी नियंत्रण और मौद्रिक नीति पर भी विचार करता है।

रिपोर्ट में विशेष रूप से यह नहीं बताया गया है कि भारत किन मानदंडों को पूरा करता या नहीं करता है, लेकिन इसमें संबंधित क्षेत्रों में नई दिल्ली के प्रदर्शन का उल्लेख है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जून के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 526.5 अरब डॉलर था, जो सकल घरेलू उत्पाद का 16 फीसदी है। भारत, रिपोर्ट में शामिल अन्य देशों की तरह, मानक पर्याप्तता बेंचमार्क के आधार पर पर्याप्त – या पर्याप्त से अधिक – विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखना जारी रखता है।

रिपोर्ट के अनुसार, इसका अमेरिका के साथ 48 बिलियन डॉलर का व्यापार अधिशेष भी था। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने आर्थिक नीति में पारदर्शिता सुनिश्चित की। एकतरफा मुद्रा हस्तक्षेप के लिए विभाग का मानदंड 12 महीनों में से कम से कम आठ में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद है, जो सकल घरेलू उत्पाद का कम से कम दो प्रतिशत है। इसने कहा कि चौथी तिमाही में भारत की विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद पिछली अवधि की तुलना में नकारात्मक 0.9 थी, या 30 बिलियन डॉलर कम थी।

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