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विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति - forex hedging strategy

विदेशी मुद्रा हेजिंग रणनीति चार भागों में विकसित होती है, जिसमें विदेशी मुद्रा व्यापारी सबसे सफल विदेशी मुद्रा रणनीति क्या है के जोखिम जोखिम, जोखिम सहिष्णुता के विश्लेषण और रणनीति की सबसे सफल विदेशी मुद्रा रणनीति क्या है वरीयता ये घटक विदेशी मुद्रा बचाव बनाते हैं: 1. जोखिम का विश्लेषण: व्यापारी को यह पता होना चाहिए कि मौजूदा या प्रस्तावित स्थिति में वह किस

प्रकार के जोखिम (जोखिम) सबसे सफल विदेशी मुद्रा रणनीति क्या है ले रहा है। वहां से, व्यापारी को यह अवश्य पहचानना चाहिए कि इस खतरे को अनफिट करने पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, और यह निर्धारित करें कि मौजूदा विदेशी मुद्रा मुद्रा बाजार में जोखिम उच्च या निम्न है या नहीं।

2. जोखिम सहिष्णुता निर्धारित करें: इस कदम में, व्यापारी अपने जोखिम जोखिम स्तर का उपयोग करता है,

यह निर्धारित करने के लिए कि स्थिति के जोखिम को कितना ढीला होना चाहिए। कोई भी व्यापार कभी शून्य जोखिम नहीं होगा; यह जोखिम लेने वाले जोखिम के स्तर को निर्धारित करने के लिए व्यापारी पर निर्भर है, और अधिक जोखिम को हटाने के लिए वे कितना भुगतान करने के इच्छुक हैं।

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इस पृष्ठ पर प्रकाशित सामग्री क्लॉज एंड हॉर्न्स कंपनी द्वारा LiteFinance के साथ संयुक्त रूप से तैयार की गई है और इसे निर्देश 2004/39/ईसी के उद्देश्यों के लिए निवेश सलाह के प्रावधान के रूप में नहीं माना जाना चाहिए; इसके अलावा इसे निवेश अनुसंधान की स्वतंत्रता को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन की गई कानूनी आवश्यकताओं के अनुसार तैयार नहीं किया गया है और निवेश अनुसंधान के प्रसार से पहले किसी भी तरह के व्यवहार पर किसी भी प्रतिबंध के अधीन नहीं है।

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विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन डॉलर घट चुका है। इस साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 फीसदी घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह 2003 के बाद सबसे तेज गिरावट है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह, भारत के सेंट्रल बैंक की ओर से रुपये के गिरावट को बचाने के लिए उठाए गए कदम हैं। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मंदी की आशंका भी गिरावट की वजह है। मंदी का एक कारण डॉलर यूरो और येन जैसी मुद्राओं मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के हाई लेवल पर पहुंच चुका है।

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में हुई तेज गिरावट, अभी तक 1 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान

विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट हुई है। (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)

विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गति से गिरावट हो रही है। भंडार में यह आए दिन नए रिकॉर्ड स्‍तर पर गिरावट जारी है। अभी तक विदेशी मुद्रा भंडार 1 ट्रिलियन डॉलर घट चुका है। इस साल करीब 1 ट्रिलियन डॉलर या 7.8 सबसे सफल विदेशी मुद्रा रणनीति क्या है फीसदी घटकर 12 ट्रिलियन डॉलर हो गया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह 2003 के बाद सबसे तेज सबसे सफल विदेशी मुद्रा रणनीति क्या है गिरावट है।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की वजह, भारत के सेंट्रल बैंक की ओर से रुपये के गिरावट को बचाने के लिए उठाए गए कदम हैं। वहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर मंदी की आशंका भी गिरावट की वजह है। मंदी का एक कारण डॉलर यूरो और येन जैसी मुद्राओं मुद्राओं के मुकाबले दो दशक के हाई लेवल पर पहुंच चुका है।

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भारत को 1991 में अपने सबसे बड़े भुगतान संतुलन संकट का सामना करना पड़ा था। उसी संकट के बाद भारत ने आर्थिक सुधार कार्यक्रम को गति दी। उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने आयात बिल के एक महीने से भी कम समय के लिए भुगतान कर सकता था। इसे ख़तरे के निशान में माना जाता है। क्योंकि यदि किसी देश के पास एक महीने से भी कम भुगतान करने के लिए पैसे न हों तो वह देश कंगाल हो सकता है। इसकी मिसाल श्रीलंका में मौजूदा संकट में भी मिलती है। श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार खाली था और उसके पास सामान आयात करने पर उसके चुकाने के भी पैसे नहीं थे। वह पेट्रोल-डीजल भी नहीं खरीद पा रहा था। बिजली संकट पैदा हो गया था। कई ज़रूरी चीजें आयात नहीं हो पा रही थीं। इसी वजह से वह देश कंगाल घोषित हो गया।

बहरहाल, भारत का भुगतान संतुलन 1991 के बाद से लगातार सुधरा। कभी-कभार उतार-चढ़ाव को छोड़ दिया जाए तो विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ता गया। 1991 के बाद से आयात के बिल को चुकाने के लिए भारत के पास विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्त रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी सीएमआईई के आँकड़ों से पता चलता है कि मार्च 1992 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना था कि तब के 4.8 महीने के आयात का भुगतान किया जा सकता था।

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