बास्केटबॉल खेल की जानकारी: इतिहास, नियम, कितने खिलाड़ी होते हैं, मैदान की लम्बाई चौड़ाई
बास्केटबॉल एक टीम खेल है, जिसमें एक समय पर एक टीम के 5 खिलाड़ी कोर्ट में होते हैं और अपने विरोधी टीम के खिलाफ एक 10 फुट (3,048 मीटर) ऊंचे घेरे (गोल) में, संगठित नियमों के तहत डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम एक गेंद डाल कर अंक अर्जित करने की कोशिश करती हैं।
समय के साथ, बास्केटबॉल ने विकास करते हुए शूटिंग, पासिंग और ड्रिब्लिंग की आम तकनीकों के साथ-साथ खिलाड़ियों की स्थिति और आक्रामक और रक्षात्मक संरचनाओं को भी शामिल किया। आम तौर पर, टीम के सबसे लंबे सदस्य सेंटर या दो फॉरवर्ड पोज़ीशनों में से एक पर खेलते हैं, जबकि छोटे खिलाड़ी या वे जो गेंद को संभालने में सबसे दक्ष और तेज़ हैं, गार्ड पोज़ीशन पर खेलते हैं।
दिसंबर 1891 के आरंभ में डॉ. जेम्स नाइस्मिथ ने, जो कनाडा में जन्मे शारीरिक शिक्षा के प्रोफ़ेसर और इंटरनेशनल यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन ट्रेनिंग स्कूल (YMCA) (वर्तमान, स्प्रिंगफ़ील्ड कॉलेज) के शिक्षक हैं, अमेरिका के स्प्रिंगफ़ील्ड, मैसाचुसेट्समें, न्यू इंग्लैंड की लंबी सर्दियों के दौरान अपने छात्रों को व्यस्त और फ़िटनेस के उचित स्तर पर रखने के लिए एक दमदार इनडोर खेल की तलाश की। वहां के एक जिम्नेज़िअम मे उन्होंने 10 फुट उन्हें ट्रैक पर एक टोकरी (बास्केट) लटका दी। यहां से बुनियादी रूप से इस खेल की शुरुआत हुई जिसमें समय-समय पर कई बदलाव देखने मिले।
खेल का लक्ष्य है विरोधियों की बास्केट में ऊपर से गेंद आर-पार डालना और साथ ही साथ विरोधियों को अपनी बास्केट में वैसा ही करने से रोकते हुए उनसे ज्यादा अंक अर्जित करना। इस तरीक़े से अंक अर्जित करने का प्रयास शॉट कहलाता है। एक सफल शॉट का मूल्य दो अंक है, या फिर तीन अंक है, जब यह थ्री-पॉइंट आर्क के उस पार से लिया जाता है, जो अंतर्राष्ट्रीय खेलों में टोकरी से 6.25 मीटर (20.5 फीट) है और NBA खेलों में 23 फीट 9 इंच (7.24 मी॰) है।
खेलों को 10 (अंतर्राष्ट्रीय) या 12 मिनट (NBA) के चार क्वाटर्स (चतुर्थांश) में खेला जाता है। एक टीम में 12 खिलाड़ियों का रोस्टर होता है और बास्केटबॉल कोर्ट पर एक समय पर एक टीम के 5 खिलाड़ी मौजूद होते हैं।
बॉल को शॉट द्वारा, खिलाड़ियों के बीच पास करके, फ़ेंक कर, टैप करके, लुढ़का कर, या ड्रिब्लिंग द्वारा (दौड़ते हुए बॉल को उछालना) टोकरी की ओर बढ़ाया जा सकता है।
गेंद का कोर्ट के अंदर रहना आवश्यक है। वह टीम जो गेंद की सीमा से बाहर जाने से पहले उसे स्पर्श करती है, उससे गेंद का अधिकार छिन जाता है। गेंद को सीमा से बाहर माना जाता है, यदि वह सीमा-रेखा को छूती या उसके पार जाती है, या उस खिलाड़ी को स्पर्श करती है जो सीमा-रेखा से बाहर है। इसके अलावा जिस खिलाड़ी के पास गेंद होती है वो बिना ड्रिबलिंग किये या फिर पास किये अगर गेंद दो कदम से ज्यादा लेकर जाता है तो उसे ट्रैवलिंग फ़ाउल करार दिया जाता है।
उपरकण
बास्केटबॉल खेल में एकमात्र आवश्यक उपकरण बास्केटबॉल और कोर्ट है। एक सपाट, आयताकार सतह जिसके विपरीत छोर पर बास्केट हो।
मैदान की लम्बाई चौड़ाई
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में एक निर्धारित बास्केटबॉल कोर्ट 28 बटे 15 मीटर होता है और NBA में 29 बटे 15 मीटर का होता है। अधिकांश कोर्ट लकड़ी के बने होते हैं, लेकिन आम तौर पर ये मैपल के भी होते हैं। जाली के साथ एक स्टील की टोकरी कोर्ट के प्रत्येक छोर पर बैकबोर्ड पर लटकी होती है।
हॉकी के नियम (Hockey)- इतिहास, खेल का मैदान, महत्वपूर्ण तथ्य एवं प्रमुख प्रतियोगिताएं
वर्तमान समय में हॉकी एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय खेल है। इस खेल का इतिहास बहुत प्राचीन है। सन् 1277 में इंग्लैण्ड में यह खेल प्रचलित था। बाद में हॉकी का खेल फ्रांस में ‘होकेट’, इंग्लैंड में ‘होकियो’, डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम कनाडा में ‘वैष्टी’, आयरलैण्ड में ‘हरली’ एवं वेल्स में ‘विण्टो’ के नाम से विकसित हुआ।
आधुनिक हॉकी खेल का जन्मदाता इंग्लैण्ड माना जाता है। सन् 1871 में इंग्लैण्ड में पहला हॉकी क्लब ‘रीडिगटन क्लब’ स्थापित हुआ। इस क्लब ने 24 अक्टूबर, 1874 को ‘रिंचमण्ड क्लब’ के साथ पहला हॉकी मैच खेला। 16 अप्रैल, 1875 को लन्दन में ‘इंगलिश हॉकी एसोसियेशन’ की स्थापना हुई । 26 फरवरी, 1895 को हॉकी का पहला अन्तर्राष्ट्रीय मैच राइल में वेल्स एवं आयरलैण्ड के मध्य हुआ। इस मैच में आयरलैण्ड को विजय प्राप्त हुई। सन् 1908 से हॉकी का ओलम्पिक में प्रवेश हुआ।
हॉकी खेल के नियम पहली बार सन् 1886 में बनाए गए। सन् 1890 में ‘इंग्लैण्ड हॉकी संघ ने हाँकी के नियमों का निर्माण किया। सन् 1887 में इंग्लैण्ड में महिलाओं का पहला हॉकी क्लब स्थापित डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम हुआ जिसका नाम ‘ईस्ट मोलसी क्लब’ रखा गया।
भारत में हॉकी खेल का आरम्भ अँग्रेजों ने किया। सर्वप्रथम सन् 1885 में कलकत्ता (कोलकाता) में ‘हॉकी संघ’ स्थापित हुआ। बाद में दिल्ली एवं पंजाब में हॉकी संघ और क्लरबों की स्थापना हुई। सन् 1908 में ‘बंगाल हॉकी एसोसियेशन’ की स्थापना हुई। सन् 1920 में कराची में ‘सिन्ध हॉकी एसोसियेशन’ की स्थापना हुई।
भारत में हॉकी प्रतियोगिताओं का आरम्भ सन् 1895 से हुआ। इन प्रतियोगिताओं में ‘वेटन कप’ एवं ‘आगा खाँ कप’ प्रतियोगिताएँ डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम विशेष प्रसिद्ध थीं। सन् 1928 से ओलम्पिक हॉकी में भारत ने भाग लेना आरम्भ कर दिया।
भारत में महिला हॉकी का आरम्भ सन् 1967 से हुआ। सन् 1968 में महिला हॉकी की पहली एशियाई प्रतियोगिता सम्पन्न हुई। सन् 1974 में महिलाओं की विश्वकप हॉकी प्रतियोगिता आरम्भ हुई। सन् 1975 में भारत में ‘महिला डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम हॉकी क्लब’ स्थापित हुआ।
हॉकी का मैदान
हॉकी खेल के मैदान की माप 91.40 x 54.24 मीटर रखी जाती है। मैदान की सभी रेखाएँ 8 सेमी मोटी रखी जाती हैं। मैदान की लम्बी लाइन को ‘साइड लाइन’ और चौड़ी लाइन को ‘कोगो लाइन’ कहा जाता है। मैदान के चारों कोनों पर एक मीटर की ऊँचाई वाली झण्डियाँ एक मीटर की दूरी पर लगाई जाती हैं। साइड लाइन की केन्द्र रेखा तथा 22:5 मीटर की दोनों रेखाओं पर भी एक गज की दूरी पर झण्डियाँ लगाई जाती हैं। गोल लाइन से 6:3 मीटर अन्दर की सीधी रेखा बिन्दुओं से चिह्नित की जाती है और साइड लाइन में 6:3 मीटर अन्दर समान्तर सांकेतिक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। मैदान के दौनों ओर लाइन के बीचोंबीच ‘गोल’ बनाया जाता है। गोल के दोनों खम्भों के बीच की दूरी 3-60 मीटर रखी जाती है। दोनों गोलों के बीच गोलाई में 14-40 मीटर व्यास का ‘डी’ क्षेत्र बनाया जाता है । गोलों के पीछे गेंद को रोकने के लिए एक जाल डाला जाता है। महिला हॉकी के मैदान की माप इस मैदान की माप से कुछ कम होती है।
हॉकी खेल के प्रमुख तथ्य
हॉकी खेल के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं-
(1) हॉकी खेल में दो टीमों के मध्य मुकाबला होता है। प्रत्येक टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं।
(2) खेल की अवधि 75 मिनट होती है, जिसमें 5 मिनट का मध्यान्तर होता है।
(3) हॉकी की बॉल सफेद रंग की होती है, इसका वजन 156 ग्राम से लेकर 163 ग्राम तक होता है तथा बॉल की परिधि 22-4 सेमी से लेकर 23.5 सेमी तक होती है।
(4) खेल में प्रयुक्त होने वाली हॉकी का भार 28 औंस तथा 23 औंस होता है।
(5) हॉकी की शब्दावली में पेनाल्टी स्ट्रोक, फ्लिक, रिवर्स फ्लिक, स्कूप, स्टिक, अम्पायर, लाइन्समन, हाफबॉली, इनफ्रिजमेण्ट, साइड लाइन, टाई ब्रेकर, सडेन डेथ, हैटट्रिक, अण्डरकटिंग, सर्किल, बुली, रोल आन, पुश इन, शूटिंग सर्किल डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
(6) हॉकी में खेल के प्रारम्भ के समय बॉल को स्टिक से मारना ‘बुली’ कहलाता है।
(7) जब विपक्षी टीम गेंद को स्वतन्त्रता से मारती है तो उसे ‘फ्री हिट’ कहते हैं।
(8) ‘पेनाल्टी कॉर्नर’ एवं ‘पेनाल्टी स्ट्रोक’, गोल करने के अच्छे अवसर हैं।
(9) स्टिक को कन्धे से ऊपर उठाना, गलत ढंग से शॉट लगाना. विपक्षी खिलाडी के खेल में बाधा डालना आदि ‘फाउल’ माना जाता है।
(10) खेल का संचालन दो ‘अम्पायर’ करते हैं, जिनका निर्णय दोनों टीमों को मानना पड़ता है।
(11) खेल में जो टीम अधिक गोल करती है, वही ‘विजेता’ घोषित की जाती है।
हॉकी खेल के नियम
हॉकी खेल के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
(1) खेल के दौरान कोई भी टीम तीन से अथिक खिलाड़ी नहीं बदल सकती है।
(2) एक बार बदला गया खिलाड़ी फिर से मैच में भाग नहीं ले सकता है।
(3) यदि हॉकी की बॉल गोल-कीपर के क्षेत्र में हो, तो वह इसे किक मार सकता है या अपने शरीर के किसी भी भाग से बॉल को रोक सकता है।
(4) अपनी टीम के लाभ के लिए कोई खिलाड़ी बॉल को जमीन अथवा हवा में अपने शरीर के किसी भाग से नहीं रोक सकता है।
(5) हॉकी के अलावा किसी भी रूप अथवा दशा में बाल को लुड़काया अथवा फेंका नहीं जा सकता है।
(6) जब अम्पायर को ऐसा लगे कि रक्षात्मक खिलाड़ी ने जानबूझकर बॉल गोल-पोस्ट के अतिरिक्त गोल रेखा में डाल दी है, तो गोल न होने की दशा में वह विपक्षी टीम को पेनाल्टी कॉर्नर देगा।
(7) पेनाल्टी स्ट्रोक आक्रामक टीम को उस दशा में दिया जाता है जब रक्षात्मक टीम का खिलाड़ी ‘डी (अर्धवृत्त) के अन्दर से जानबूझकर गलती करता है अथवा अनजाने में फाउल से बाल रुक जाती है।
(৪) पेनाल्टी स्ट्रोक आक्रामक टीम का कोई भी खिलाड़ी 6.40 मीटर की दूरी से मार सकता है, जिसे केवल रक्षक टीम का गोल-कीपर ही रोक सकता है।
(9) पेनाल्टी स्ट्रोक की बाल यदि कन्धे से ऊँची है तो गोल-कीपर उसे स्टिक से रोक सकता है।
(10) यदि बाल अर्द्धवृत के अन्दर स्थिर हो जाए अथवा बाहर चली जाए तो पेनाल्टी स्ट्रोक समाप्त हो जाता है।
(11) यदि पेनाल्टी के समय गोल-कीपर द्वारा हॉकी-नियमों का उल्लंघन करने पर बाल रुक भी जाए, तो भी गोल हुआ मान लिया जाता है।
(12) हॉकी खेल में तौन काडों का प्रयोग होता है- हरा काई मिलने पर खिलाड़ी को चेतावनी दी जाती है, पीला कार्ड मिलने पर खिलाड़ी 5 मिनट के लिए खेल से बाहर कर दिया जाता है और लाल कार्ड मिलने पर खिलाड़ी पूरे समय के लिए खेल से निकाल दिया जाता है।
प्रमुख प्रतियोगिताएँ
- ओलम्पिक हॉकी
- विश्व कप (पुरुष एवं महिला)।
- एशिया कप
- बेटन कप
- लेडी रतन टाटा कप (महिला)
- महाराजा रंजीतरसिंह गोल्ड कप
- एम० सी० सी० कप
- अन्तरमहाद्वीपीय हॉकी कप (महिला)
- सिन्धिया गोल्ड कप
- गुरुनानक कप
- ध्यान चंद्र ट्रॉफी
- सीनियर नेहरू डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम हॉकी ट्रॉफी
- दयावती देवी ट्रॉफी ।
- एशियाई हॉकी
- रंगास्वामी कप
- इन्दिरा गोल्ड कप
- आगा खा कप
- अजलानशाह कप
- विलिंगटन कप
- मुरुगप्पा गोल्ड कप
- आल्पस कप
- मुंबई गोल्ड कप
- ओबेदुल्ला गोल्ड कप
- गुरमीत ट्रॉफी
- रेने फ्रांक ट्रॉफी
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विकास के सिद्धांत | Principles of Development in Hindi
विकास के सिद्धांत (Principles of Development) को समझने से उपरांत यह समझना अति आवश्यक है, कि विकास क्या हैं? विकास के अर्थ को हम सामान्यतः एक बदलाव के रूप में देखते हैं, अर्थात किसी भी स्थिति में जो एक चरण से दूसरे चरण में जाता हैं, अर्थात उसकी स्थिति में जो भी बदलाव आता है हम उसे विकास कहते हैं।
विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं, क्योंकि बदलाव दिन-प्रतिदिन आते हैं। विकास की कोई सीमा नही होती। विकास जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलते रहता हैं। तो डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम दोस्तों, आइए अब जानते है कि विकास के सिद्धांत (Principles of Development) क्या हैं?
विकास के सिद्धांत Principles of Development in Hindi
क्या आप जानते हैं कि सिद्धांत कहते किसे हैं? सिद्धान्त को प्रायः एक ऐतिहासिक धारणाओं एवं विचारों के रूप में स्वीकार किया जाता हैं। सिद्धांत एक मानक होता हैं। जिसके आधार पर डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम किसी भी वस्तु की व्याख्या की जाती हैं। इसमें किसी निश्चित सिद्धांत के आधार पर ही किसी वस्तु को परिभाषित किया जाता हैं।
इसी तरह विकास के भी अपने कुछ मानक हैं, जिसके आधार पर चलकर विकास की व्याख्या की जाती हैं। इन्ही विकास के सिद्धांतो principles of development के अनुरूप हम विकास के अर्थ,कार्य,प्रक्रिया एवं सीमा का निर्धारण सुनिश्चित करते हैं। विकास के निम्न सिद्धांत हैं-
1) विकास की दिशा का सिद्धांत (Principle of development direction
2) निरंतर विकास का सिद्धांत (Principle of continuous development)
3) व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत (Principle of individual differences)
4) विकास क्रम का सिद्धांत (Theory of evolution)
5) परस्पर संबंध का सिद्धांत (Reciprocal principle)
6) समान प्रतिमान का सिद्धांत (Principle of common pattern)
7) वंशानुक्रम सिद्धांत (Inheritance principle)
8) पर्यावरणीय सिद्धांत ( Environmental principles)
1- विकास की दिशा का सिद्धांत – इस सिद्धांत का यह मानना हैं कि बालकों के विकास सिर से पैर की तरफ होता हैं,मनोविज्ञान में इस सिद्धांत को सिरापुछिय दिशा कहा जाता हैं। जिसके अनुसार पहले बालको के सिर का उसके बाद उसके नींचे वाले अंगों का विकास होता हैं।
2- निरंतर विकास का सिद्धांत – यह सिद्धांत मानता हैं कि विकास अचानक नहीं होता बल्कि विकास की प्रक्रिया धीरे-धीरे पहले से ही चलते रहती हैं परंतु इसकी गति में बदलाव आते रहता हैं,अर्थात कभी विकास तीव्र गति से होता हैं तो कभी निम्न गति से।
3- व्यक्तिगत भिन्नता का विकास – इस सिद्धांत के अनुसार विकास प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न तरीको से होता हैं। दो व्यक्तियों में एक समान विकास प्रक्रिया नहीं देखी जा सकती। जो व्यक्ति जन्म के समय लंबा होता है, तो वह आगे जाकर भी लंबा व्यक्ति ही बनेगा। एक ही उम्र के दो बालकों में शारीरिक,मानसिक एवं सामाजिक विकास में भिन्नताएँ स्प्ष्ट देखी जा सकती हैं।
4- विकास क्रम का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास निश्चित क्रम के अनुसार ही होता हैं, अर्थात बालक बोलने से पूर्व अन्य व्यक्ति के इशारों को समझकर अपनी प्रतिक्रिया करता हैं। उदाहरण- बालक पहले स्मृति स्तर में सीखता हैं फिर बोध स्तर फिर अंत में क्रिया करके।
5- परस्पर संबंध का सिद्धांत – बालक के शारीरिक, मानसिक,संवेगात्मक पक्ष के विकास में एक प्रकार का संबंध होता हैं,अर्थात शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके मानसिक विकास में भी वृद्धि होती हैं और जैसे-जैसे उसका मानसिक विकास होते रहता हैं वैसे-वैसे वह उस मानसिक विकास को क्रिया रूप में परिवर्तन करते रहता हैं।
6- डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम समान प्रतिमान का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास किसी विशेष जाति के आधार पर होता हैं। जैसे व्यक्ति या पशुओं का विकास अपनी-अपनी कुछ विशेषताओं के अनुसार होता हैं।
7- वंशानुक्रम सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास उसके वंश के अनुरूप होता हैं, अर्थात जो गुण बालक के पिता,दादा में होते है,वही गुण उनके शिशुओं को मिलते हैं। जैसे अगर उनके वंश में सभी की लंबाई ज्यादा होती हैं तो होने वाला बच्चा भी लंबा ही होता हैं।
8- पर्यावरणीय सिद्धांत – यह सिद्धांत वंशानुक्रम सिद्धांत के अनुरूप हैं। यह मानता हैं कि व्यक्ति का विकास उसके आस-पास के वातावरण पर निर्भर करता हैं, अर्थात पर्यावरण जिस प्रकार का होगा व्यक्ति का विकास भी उसी दिशा की ओर होगा।
तो दोस्तों, आज आपने जाना कि विकास के सिद्धांत (Principles of Development in Hindi) क्या-क्या हैं। अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी अवश्य शेयर करें। अन्य किसी प्रकरण में जानकारी पाने हेतु हमारी सभी पोस्टों को ध्यानपूर्वक पढ़े।
Driving License New Rule 2022: ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के नियम में हुआ बदलाव, जानिए आपको क्या होगा फायदा
अगर आप भी दो पहिया या चार पहिया वाहन चलाते हैं और आपको इसके लिए ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है तो आपके लिए अच्छी खबर सामने आई है। अब आपको ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस यानी आरटीओ दफ्तर के चक्कर लगाने या फिर लंबी लाइनों में लगने की जरूरत नहीं है। अब ये काम आसानी से हो जाएगा। ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए केंद्र सरकार ने कुछ नए नियम लागू किए हैं। नए नियम के मुताबिक अब आपको ड्राइविंग टेस्ट देने की कोई जरूरत नहीं है। केंद्रीय सड़क परिवहन और हाईवे मंत्रालय ने ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने डाउ थ्योरी के 5 बुनियादी नियम के नियमों में कुछ बदलाव किया है। साथ ही अब ये नियम लागू भी हो गए हैं। ऐसे में नए नियम के चलते लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस के लिए आरटीओ की वेटिंग लिस्ट में पड़े रहने से राहत मिलेगी। तो चलिए जानते हैं कि नए नियम के मुताबिक अब कैसे बनेगा ड्राइविंग लाइसेंस.
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